क्या मात्र 21 दिन के लॉकडाउन के बाद आप अपनी पुरानी जीवनशैली में लौट सकते हैं?

क्या मात्र 21 दिन के लॉकडाउन के बाद आप अपनी पुरानी जीवनशैली में लौट सकते हैं?

डॉ. दीपाली भारद्वाज

बेशक नोवेल SARS Covid-19 के बारे में हमें अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। जिसके लिए हम मूकदर्शक बने। अपने घरों में कैद इंतजार कर रहे हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिकों की तरफ आस की नजर से देख रहे हैं कि जल्द ही वो अपनी इस वायरस पर जारी खोज को पूरा करें। जिससे कि मानव जाति पर आई इस विपदा से उन्हें सुरक्षित निकाला जा सके।

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पहले चाइना फिर इटली, स्पेन, जर्मनी, यूके के बाद अब USA में इस वायरस से फैले संक्रमण को देखकर दिल रोता है। हालांकि भारत की सरकार ने इस वायरस से निपटने के लिए बहुत से सकारात्मक और सराहनीय कदम उठाए हैं। लेकिन फिर भी मेरी नजर अभी ये कह पाना मुश्किल है कि इस वायरस से बच निकलने के लिए ये 21 दिन काफी हैं या नहीं।

निश्चित रूप से जैसे एक माँ अपने बच्चे को बीमार होने पर धीरे-धीरे दवाई देकर ठीक करने की कोशिश करती है। वैसे ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ताली, थाली और उन सभी विकल्पों का इस्तेमाल किया है। जिसकी इस समय देश को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। ये किसी भी देश के प्रधानमंत्री के लिए एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। लेकिन अपने देशवासियों को सही सलामत रखने के लिए साहसिक कदम भी उनकी तरफ़ से लगातार उठाए जा रहे हैं। उनकी इस वीरता और साहस को देखकर गर्व महसूस होता है। और उनके हर एक कदम में हम उनके साथ खड़े हैं।

एक डॉक्टर होने के नाते मैं कहना चाहती हूँ कि किसी भी चीज के बारे में पुष्टि करने के लिए हमें समय के साथ साथ वैज्ञानिक अनुसंधान और कई परीक्षणों पर निर्भर रहना पड़ता है। वैश्विक प्रवृत्ति को देखकर बात करें तो भले ही एक शहर के 10 लोग एक समूह में सड़क पर हैं और एक दूसरे से दूरी बनाकर नहीं रख रहे हैं और अगर उस शहर में तालाबंदी भी नहीं की गई है अलग-अलग जगहों से लोगों का आना जाना अगर यहाँ लगातार जारी है। अगर ये सब ऐसे ही चलता रहा तो यक़ीन मानिए ये 21 दिन का समय और बढ़ता ही चला जाएगा। ये बीमारी ऐसी है जिससे सभी को अलग- अलग होते हुए भी साथ में लड़ना होगा।

मैं आपको एक बात निश्चित रूप से बता देना चाहती हूँ कि इस बीमारी को सिर्फ़ घर के अंदर रहने से नहीं रोका जा सकता। जब तक कि कोई समूह सड़कों पर मौजूद है। फिर चाहे वो किसी भी वजह से ही क्यों ना भूख हो, ATM हो या फिर कोई धार्मिक कारण या अपने घर से गांव ही जाने की वजह और फिर रोज़ के तौर पर हमारे घरों तक आने वाले लोग जैसे सब्जीवाले, दूध वाले भी इस वायरस के संक्रमण की साइकिल को बढ़ा ही रहे हैं। हमें सिर्फ ये ध्यान रखना है कि जो भी इस बीमारी से संक्रमित है वो कैरियर बनकर और दूसरे लोगों को अपनी चपेट में ना ले ले। हमारा मुख्य मकसद है इसकी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की चेन को तोड़ना, जिसके लिए व्यक्ति से व्यक्ति के संपर्क को कुछ नहीं तो 99 फीसदी तक रोकना होगा। तभी इससे संक्रमित होने पर मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। वो भी तब जब ये वायरस पहले के और महामारी फैलाने वाले वायरस से ज्यादा रोगजनक है। और ये तो आप जानते ही हैं कि बोरिस जॉनसन जो कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं। इस बीमारी से संक्रमित होने वाले दुनिया के पहले प्रधानमंत्री हैं। लेकिन भारत की 134 करोड़ जनसंख्या को इस संकट से उबारने के लिए अब तत्काल ही एक्शन लेना होगा।

हालांकि भारत की वर्तमान सरकार की तरफ से इस वायरस के ख़िलाफ़ उठाए गए कदम वाक़ई अच्छे हैं लेकिन क्या इस वायरस के संक्रमण को यहीं रोक देने की सिर्फ़ पुलिस, नगरपालिका, ब्यूरोक्रेट्स या फिर राजनेताओें की ही ज़िम्मेदारी है ? बल्कि ये ज़िम्मेदारी है देश के हर एक नागरिक की

दिलचस्प बात ये है कि एक डॉक्टर होने के नाते पिछले कई वर्षों में मैं बहुत से ऐसे लोगों के संपर्क में आई जो काफ़ी अमीर हैं और क्योंकि मैं स्किन स्पेशलिस्ट हूँ तो कई लोग अपनी स्किन एलर्जी को ठीक करने के लिए मुझे कितनी भी बड़ी क़ीमत देने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि उनके शरीर पर अचानक से आई लालिमा से उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है। लेकिन जवाब में मैं उनको समझाती हूँ कि आपका पैसा नहीं बल्कि आपकी जीवनशैली आपको आपकी इस परेशानी से लड़ने में मदद करेगी। वो भी तब जब आप दिल्ली के इस उच्च प्रदूषण आपातकाल में जीने के लिए मजबूर हों, ये भी प्रकृति का एक दिव्य संकेत था। साथ ही प्रकृति की तरफ़ से कई तरह के और भी संकेत दिए गए, जिन्हें नज़रअंदाज़ किया गया और हमें आज ये सब देखना पड़ रहा है। जहां पैसे का कोई भी बंडल आपको बचा नहीं सकता बल्कि मदद करेगा इस बीमारी से संक्रमित लोगों का जल्द से जल्द किया गया परीक्षण भले ही वो किसी प्राइवेट लैब में ही क्यों ना किया गया हो।

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अभी हम जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वो हमें ऐसी परिस्थिति में लाकर खड़ा कर सकती है। जब हमारी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए ग्लोबल विलेज एक कल्पना मात्र होगी और जो लोग इस बीमारी को अमीरों की बीमारी समझ रहे हैं वो तो मानो इस मौजूदा आपदा के लिए अन्य किसी और आपदा में कूदने की तैयारी कर रहे है।

सही मायने में लॉकडाउन का मतलब क्या है। आम भाषा में कहें तो हम ख़ुद को एक ताले में बंद इस वायरस के ख़िलाफ़ इसलिए कर रहे हैं। जिससे कि ये वायरस जो कि एक जीव नहीं है बल्कि एक प्रोटीन मॉलीक्यूल है जो कि लिपिड की एक सुरक्षात्मक परत से कवर किया हुआ है जो कि जब नाक, आँख और मुँह के सेल्स के ज़रिए जब अवशोषित होता है तो फिर अपने जेनेटिक कोड को बदलता है…और फिर उन्हें शरीर के अंदर ही और बदलकर और आक्रामक बना देता है जिस वजह से रुकावट आती है श्लेष्म झिल्ली को बनने में और फिर आगे के चरण में फेफड़ों में परेशानी होने लगती है जिसके बाद ये वायरस आंतरिक अंगों को ख़राब करने लगता है और धीरे धीरे करके मृत्यु हो जाती है। रोगों से लड़ने की हर एक शरीर की अलग-अलग क्षमता होती है और इस वायरस की चपेट में आकर जिसका शरीर ज़्यादा दिन तक इससे लड़ पाता है वो ज़्यादा जीवित रह पाता है और जो नहीं लड़ पाता, उसकी मृत्यु जल्दी हो जाती है।

लेकिन शुक्र है कि SARS Covid-19 की मृत्यु दर पहले के वायरस से फैली महामारी की तुलना में कम है जो कि लगभग हर एक दशक में अब तक होती आ रही है और जानवरों से मनुष्यों में फैली है फिर चाहे वो Severe Acute respiratory syndrome SARS 2002 हो या फिर Middle East respiratory syndrome MERS COV 2012, WHO की तरफ से जारी आंकड़ों की बात करें तो MERS की मृत्यु दर 34.4 फीसदी थी और SARS की 9.5 फीसदी लेकिन अभी भी डर उस SARS COV2 का ही सबसे ज्यादा है क्योंकि वो बहुत ही आसानी से किसी भी बाहरी वातावरण, ह्यूमिडिटी, तापमान और किसी भी प्रकार के सामान पर मौजूद हो सकता है। ये वायरस मानव शरीर के बाहर नहीं मर सकता क्योंकि ये एक जीव नहीं है। अभी Covid-19 वायरस के खत्म होने के निश्चित घंटों की जानकारी नहीं हो सकी लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि ये वायरस 12 घंटे में खत्म हो जाता है। हालांकि इस Covid-19 वायरस में MERS और SARS की तुलना में उच्च प्रजनन भागफल है। लेकिन सौभाग्य से इसकी रोगजनकता बहुत कम प्रतीत हो रही है।

तो तालाबंदी के अलावा एक के बाद एक सभी को फिर चाहे वो कुछ भी हो सरकारी एजेंसी ही क्यों ना हो, उन्हें ये ध्यान रखना है कि अगर उन्हें इस माहामारी के वक़्त भी लोगों से काम कराना है तो उसके लिए रोस्टर बनाए जाए अलग-अलग शिफ्ट्स लगाई जाए सारे सुरक्षात्मक कदम हर एक नागिरक ख़ुद उठाए तो हमें विश्वास है कि अभी हम स्टेज 3 के मध्य में हैं और इसके बाद हम इसे काफ़ी हद तक थाम पाने में सफल हो पाएंगे और जिन लोगों का सवाल ये है कि ये एक जैविक युद्ध है कि नहीं तो उन लोगों से तो मैं यही कह सकती हूँ कि अभी इस सवाल का जवाब देना मुनासिब नहीं है।

ये वायरस मल में ज़्यादा देर तक टिकता है जैसी कि Lancet ने कहा है जो कि उस संक्रमित व्यक्ति का बायोवेस्ट माना जाता है। जो कि इस बीमारी का एक कैरियर हो सकता है। संभवत: उस संक्रमित व्यक्ति से जुड़ी हर एक चीज इस बीमारी की एक कैरियर हो सकती है और इन्हीं सब चीजों को खत्म करना हमारे लिए अभी की सबसे बड़ी चुनौती है इसके लिए हमें उन सभी चीजों को खत्म करना होगा। जिसमें कहीं भी उस वायरस के होने की आशंका हो फिर चाहे वो डॉक्टरों के सुरक्षात्मक सूट हों मास्क्स हों दस्ताने हों या फिर खाने की कोई भी चीज जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आई हो ये जिम्मेदारी लोकल नगरपालिकाओं को अपने कंधों पर लेनी होगी हमें एक और बात पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। अभी तक जितने भी लोग इस वायरस से संक्रमित पाए गए हैं उसका 4 फीसदी हिस्सा ऐसा है जो कि स्वास्थ्य सेवा से जुड़ा हुआ है। जिनकी भारत और भारत के कई राज्यों में संख्या ज्यादा भी हो सकती है। हमें उन लोगों के मल और उनसे जुड़ी चीजों को भी डिस्पोज करने के लिए सोचना होगा। तभी हम इस वायरस से निपटने के लिए की गई तालाबंदी का फायदा उठा पाएंगे। इस प्रक्रिया को 14 दिनों के लिए जारी रखना होता है जब एक पॉजीटिव केस नेगेटिव में बदलने लगता है या फिर ICMR के दिशा निर्देशों के अनुसार कुछ और लंबे समय तक सरकार को बहुत से काम करने हैं। सरकार ने बहुत से संसाधन लगाए हुए हैं। लेकिन इस परिस्थिति में बहुत भी कम ही है। लंबे समय से स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बहुत ज़रूरी था। लेकिन इसके बाद भी सरकारों की तरफ़ से इस दिशा में लगातार अनदेखी की गई अभी तक सबसे ज़्यादा लोगों की जान लेने वाली बीमारी टीबी ही है। WHO के दिए आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 में विश्व भर में टीबी के 96 लाख केस सामने आए थे। जिसमें से सिर्फ भारत में टीबी के करीब 22 लाख केस थे और अब साल 2019 में भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जानकारी दी है कि केवल साल 2018 में ही टीबी के 21.8 लाख मामले सामने आए हैं वैश्विक स्तर पर इससे होने वाली मृत्यु दर HIV AIDS से होने वाली मौतों को भी पार कर गई है। दुनियाभर में 16 लाख लोग टीबी की चपेट में आकर अपनी जान दे चुके हैं। जिसके बल पर कहा जा सकता है कि विश्व स्तर पर टीबी सबसे घातक संक्रामक रोग है।

एक डॉक्टर के रूप में मुझे यक़ीन है कि भारत जैसा देश जिसकी एकाग्रता पॉलीटिकल मुद्दों, वार्षिक GDP, व्यापार और अर्थ्वयवस्था पर ज्यादा रहती है। .वो इन सब से अपना ध्यान हटाकर अपनी एकाग्रता को देश की बेहतरी की तरफ मोड़ देगा। गरीबों को राजनीति से ऊपर उठाना होगा, साथ ही सभी राजनीतिज्ञों को इस एक मुद्दे पर साथ आना होगा, जो सभी कि हित में है और उन्हें अपने अपने निर्वाचित क्षेत्रों के लिए इस बीमारी से निपटने के लिए चमत्कारी कदम उठाने होंगे जब तक कि नोवेल Covid-19 वायरस का एक लंबे वक्त तक चलने वाला टीका नहीं बन जाता।

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कृपया ध्यान दें कि वायरस जीवित नहीं है ये सिर्फ़ आप और सिर्फ़ आप हैं जो इस वायरस को अपने अंदर ले सकते हैं। वायरस अपने आप आपको निशाना नहीं बना सकता, अगर वायरस से आप संक्रमित हो गए हैं तो इसके लिए ज़िम्मेदार सिर्फ आप ही हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इस वायरस से बचने के लिए एक स्वस्थ समाज बनाया जाए, जो कि सभी के लिए ज़रूरी है नहीं तो कोई नहीं है जो इस महामारी से निपटने में हमारी मदद कर सकता है। हमें इससे लड़ने के लिए अपनी मदद ख़ुद ही करनी होगी।

(भारत की प्रमुख स्किन और एंटी एलर्जी विशेषज्ञ एंव अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रशिक्षित एंटी ऐजिंग विशेषज्ञ)

 

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